Thursday, March 31, 2011

हमारी दुलारी

आज हम तुम को भुला देते है.
कमबख्त खुद को रुला देते है.

दूर क्या गई तुम हमारी नजरोसे
आयना भी नजर चुराते है .

क्या कमी थी हमारे प्यारमे
जो आज इतिहास बनकर रह गई.
अपने के इस चाहमे
दुनिया हमारी बदल गई

अपनापन न मिल सका
जिन्दगी सुनापनसे भर गई.

जिस मोड़ पर छोड़ गई
उस मोड़ पर हम रुक गए

हम बाप बन कर न सही
तुम बेटी बनकर भी सही

आजाओ वापस हमारी दुलारी
इस जीव को है आशा तुम्हारी..
--
Jitesh Shah (જીતેશ શાહ)

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